“साहिल”

कुछ तो ऐसा होता हैं
जिससे मन हमारा अनजान हैं
हैं कोई ऐसी ताकत जो…
देती हवा को वेग हैं..!
चले हैं संसार… मिले हैं सभी को श्वास..!!
हैं वो गजब की शक्ति
जो….स्वरूप बदलकर
अलग अगल अंदाजमें
नित नित नई भूमिका अदाकार
प्रकृति को पाले हैं…
कहाँ से आये….?
कहाँ गायब हो जाये…?
नहीं यहाँ कोई समझ पाएं..!
फिर.. भी लालनपालन कर…
हर एक लम्हें सर्जन, विसर्जन के सागर का
साहिल बन जग को उगारे…!!!!