*साल क्या होता नया पुराना (गीत)*

*साल क्या होता नया पुराना (गीत)*
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चला अनवरत समय ,साल क्या होता नया-पुराना
(1)
दिवस-महीने आते-जाते हैं तारीख बदलती
आयु बीतती जाती हर क्षण मानव को यह छलती
पृष्ठ पलटना ज्यों पुस्तक का, यह नव-वर्ष मनाना
(2)
सौ वर्षों का एक कलैंडर मानव की यह काया
जब-जब बीता साल ,हर्ष मानव ने खूब मनाया
अरे अरे! अब एक वर्ष का है कम समय-खजाना
(3)
सोचो लक्ष्य जगत में क्या ,हम क्यों दुनिया में आए
चलो ठीक यह पद-प्रसिद्धि में सौ-सौ चाँद लगाए
मगर न खोजा बैठ तसल्ली से जो पथ अनजाना
चला अनवरत समय ,साल क्या होता नया पुराना
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451