सार छंद / छन्न पकैया गीत

सार छंद. (छन्न पकैया गीत )
सार छंद गीतात्मक मात्रिक छंद हैं , इसका एक रूप छन्न पकैया गीत भी हैं
( छन्न पकैया में प्रथम चरण एक तरह से गीत छंद की टेक हुआं करती है )
प्रथम चरण की मात्राए चौपाई की तरह १६ , दूसरे चरण की मात्रा १२ होती है. अर्थात, १६-१२ पर यति होती है
पदों के दोनों चरणान्त -२२ या २११ या ११२ या ११११) से होते हैं.
किन्तु गेयता के हिसाब से २२ से हुआ चरणान्त अच्छा रहता है
पदों के किसी चरणान्त में तगण (२२१), रगण (२१२), जगण ( १२१) वर्जित हैं
चार चरण में सार छंद
जहाँ कहीं चुुप रहना होता , लोग वहीं पर बोलें |
नहीं जहाँ पर जाना सबको,आसपास ही डोलें ||
करे सियासत अवसर की सब,बंद पोटली खोलें |
बात बढ़ाने के चक्कर में , लोग धूल को तोलें ||
खामोश समय जब हो जाता , लोग बदलना जाने |
खूब नाचती खाली बोतल, गाती मन. के गाने ||
रखें आरजू हम भी कितनी , अब उनको अपनाने |
मौसम का परिवर्तन होता , मिलते अजब तराने ||
दूर सदा जो फितरत रखते , नहीं पनपने देते |
वही एक दिन घायल होकर , दिल में नफरत सेते ||
भरी बदलियाँ जहाँ बरसती , वही बीज हम बोते |
पर कटुता के बृक्ष जहाँ है , वहाँ प्यार को खोते ||
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अब यही सार छंद में मुक्तक
जहाँ कहीं चुुप रहना होता , लोग वहीं पर बोलें |
नहीं जहाँ पर जाना सबको ,आसपास ही डोलें |
करे सियासत अवसर की सब,नहीं भरोसा यारो ~
बात बढ़ाने के चक्कर में , लोग धूल को तोलें |
खामोश समय जब हो जाता , लोग बदलना जाने |
खूब नाचती खाली बोतल, गाती मन. के गाने |
रखें आरजू हम भी कितनी , दुवां बनाए दूरी ~
मौसम का परिवर्तन होता , मिलते अजब तराने |
दूर सदा जो फितरत रखते , नहीं पनपने देते |
वही एक दिन घायल होकर , दिल में नफरत सेते ||
भरी बदलियाँ जहाँ बरसती ,वही बीज हम बोते ~
पर कटुता के बृक्ष जहाँ है , नहीं प्यार को लेते |
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अब सार छंद में गीतिका
खामोश समय जब हो जाता , लोग बदल कर जाने |
खूब नाचती खाली बोतल, गाती आकर. गाने ||
जहाँ कहीं चुुप रहना होता , लोग वहीं पर बोलें ,
नहीं जहाँ पर जाना सबको , बिखरे जलकर दाने |
करे सियासत अवसर की सब,बंद पोटली खोलें ,
बात बढ़ाने के चक्कर में , धूल डालकर छानें |
मौसम का परिवर्तन होता , करते उल्टी बातें ,
रखें आरजू हम भी कितनी , जिसको तत्पर माने |
दूर सदा जो फितरत रखते , नहीं पनपने देते ,
देख उसूलों की वह लगते , क्यो जाकर अपनाने |
भरी बदलियाँ जहाँ बरसती , वही बीज हम बोते ,
पर कटुता के बृक्ष जहाँ है , उगे वहाँ पर दाने |
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मेरा एक – सार छंद में (छन्न पकैया) गीत
धत् तेरे की – धत् तेरे की , उनकी गज़ब कहानी |
चुगली करके कहते सबसे , मै बोलूँ सच वानी ||
धत् तेरे की ||
धत् तेरे की – धत् तेरे की , उनकी कैसी बोली |
मुख से बोली छूटती , जैसे चलती गोली ||
धत् तेरे की ,
धत् तेरे की – धत् तेरे की , कैसे- कैसे नेता |
देता कहता है जो खुद को ,सबको लगता लेता ||
धत् तेरे की ,
धत् तेरे की – धत् तेरे की , नेता जी की पूजा |
जो जनता को पीछे मारे , तेज नुकीला सूजा ||
धत् तेरे की ,
धत् तेरे की – धत् तेरे की, जो जनता के आलम |
दाग लगाकर देते रहते , दोनों हाथों मरहम ||
धत् तेरे की ,
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मेरा दूसरा -सार छंद (छन्न पकैया) गीत-
गोरी कहती -गोरी कहती , मै अलबेली नारी |
चंदा सूरज मेरे प्रीतम , जिन पर मै बलिहारी ||
गोरी कहती -गोरी कहती ,
गोरी कहती- गोरी कहती , जो मेरे है साजन |
फूल खिलाते सुंदर-सुंदर , मेरे मन के आंगन ||
गोरी कहती -गोरी कहती ,
गोरी कहती- गोरी कहती , चंदा गाता गाना |
मेरे ही गालो पर खुद तिल, आ बैठा दीवाना ||
गोरी कहती – गोरी कहती ,
गोरी कहती-गोरी कहती नथनी का यह मोती |
मेरी सुंदरता से आई, इस पर जगमग ज्योति ||
गोरी कहती – गोरी कहती ,
गोरी कहती-गोरी कहती , काजल की यह रेखा |
तीर धनुष पर चढ़ता जानो,जग ने यह सब देखा ||
गोरी कहती – गोरी कहती ,
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@ सुभाष सिंघई
(एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र )
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष , समांत पदांत दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें