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27 Oct 2022 · 1 min read

साजिशों की छाँव में…

साजिशों की छाँव में…
~~°~~°~~°
साजिशों की छाँव में ,
पलते रहे,बढते रहे ।
जड़ें कितनी गहरी बिछी ,
ये तो कभी जाना नहीं ।

वो आए हुए मेहमान थे ,
पर दिल में बसे शैतान थे।
साजिशें वो रचते गए ,
हमने कभी पहचाना नहीं।

बंदिशों का दौर आया ,
हम जानकर अंजान थे।
रस्मों रिवाज छुटते गये ,
देखा कभी मुड़कर नहीं।

छिन गयी थी ये जमीं ,
छिन गया अरमान भी।
जमीर अपना मारकर ,
बदला था ईमान भी।

अपने भले जो थे कभी ,
वो अब पराये लगते हैं।
टीस जो दिल में उठी थी ,
वो जख्म जैसे लगते हैं।

लिख रहा मैं अहसास जो ,
अल्फाज बस समझो न तुम।
इतिहास के पन्ने पलट ,
ज्ञान कुछ सीखो न तुम।

अग्निपरीक्षा की इस घड़ी ,
अब भी यदि संभले नहीं ।
मुल्क और सियासत है जो ,
मौका फिर ,कभी देगा नहीं।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –२७ /१०/२०२२
कार्तिक,कृष्ण पक्ष ,द्वितीया , गुरुवार
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail

Language: Hindi
8 Likes · 2 Comments · 372 Views
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