सांस
काले घने बादलों की परछाई में,
दम तोड़ती नीरस आँखों की गहराई मेँ,
एक सांस बचा रखी है बाकी अभी,
कि आयेगा कभी,
जो ले जायेगा वहां,
सब मिट जायेगा जहां।
ना रोशनी होगी,
ना परछाई होगी,
शून्य की अनंत गहरायी होगी।
शायद वही होगी एक असीम झलक ऐसी,
जिसके लिए बचा रखी है एक सांस बाकी अभी।
डॉ राजीव
चंडीगढ़।