*सरिता निकलती है 【मुक्तक】*

*सरिता निकलती है 【मुक्तक】*
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जीभ कोमल दाढ़-दाँतों बीच पलती है
रात के स्वागत में उजली धूप ढलती है
देखिए जग में विरोधाभास की बातें
पर्वतों के गर्भ से सरिता निकलती है
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451