Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Apr 2022 · 3 min read

समीक्षा -‘रचनाकार पत्रिका’ संपादक ‘संजीत सिंह यश’

‘रचनाकार प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित साहित्य और संस्कृति की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका (जनवरी माह, 2022), जिसके प्रधान संपादक आदरणीय ‘संजीत सिंह यश’ जी हैं, जब ऑंखों के सामने आई तो मन सहसा खुशी से भर उठा, कारण था, साहित्य और संस्कृति की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का उत्कृष्ट भाव, संपादक महोदय की लगन और साहित्य के प्रति उनका सर्मपण। इस पत्रिका में 14 साहित्यकारों के गीत/नवगीत हैं तो 12 रचनाकारों के छंद एवं मुक्तक हैं, 6 कलमकारों की ग़ज़लें हैं, तथा दो गद्य लेखकों (आ. राजेश रावल जी की तथा स्नेह प्रभा पाण्डेय जी की) ने संक्षेप में ही सही, पर नव-विकसित सोच को उजागर किया है।

आज इस अविस्मरणीय अंक के बारे में कुछ लिखते समय बहुत सुखद अनुभूति हो रही है क्योंकि हिंदी साहित्य के जिन रूपों को संपादक महोदय ने इसमें सम्मिलित किया है, वो सब अपनी-अपनी विधाओं में परिपूर्ण हैं। किसी भी पत्रिका का मुख्य आर्कषण होता है उसका संपादकीय लेख, जिसके माध्यम से हम पत्रिका के भीतर छिपे एक रहस्यमय संसार का प्रारंभिक परिचय पाते हैं। इस पत्रिका का यह पक्ष इतना परिपक्व है कि पहली पंक्ति पढ़ते ही मन आशा से भर उठा, कि “जीवनेच्छा जब तितिक्षा के रूप में विकसित होती है और कष्टसाध्य समझी जाने वाली परिस्थितियों से भी जूझने के लिए खड़ी हो जाती है..”, जिस पत्रिका से संपादक इतने गहन भाव से जुड़े हों, नि: संदेह उसका हर पक्ष सुदृढ़ और संतुलित होता है। पत्रिका का भाव पक्ष और कला पक्ष अपने आप में संपूर्णता लिए है। इसमें प्रस्तुत प्रथम गीत की इन पंक्तियों ने ही मानस पटल को नव-विचार से भर दिया। उदाहरण स्वरूप-“नयी जरूरत पैर घटायें, क्षण विलास के पास न आयें”,
“हो परमार्थ हेतु साधना, नये वर्ष पर यही कामना” , जिस साहित्य में परमार्थ की कामना की जाये, उसकी उन्नति तो सदैव ही निश्चित है। पत्रिका का भाव पक्ष इतना प्रबल है कि पाठक स्वयमेव ही जुड़ जाता है। अनुपम प्रस्तुति के कुछ उदाहरण देखिए -“स्वप्न की जागृत तुला पर, भाव मन के तुल रहे हैं, एवं “अब न मैं घबरा रहा हूॅं, अब न स्वर ही टूटते हैं “(अवधेश जी), इनको पढ़कर ही मन नेह से भीगे आत्मविश्वास से भर जाता है। इसी प्रकार गीत विधा को सार्थकता प्रदान करती हुई, संगीतात्मकता समेटे ये प्रेम रचनाएं भी मन छू जाती हैं –
“मन के इन खाली पृष्ठों पर प्राणप्रिये विश्वास लिखो” तथा
“प्रेम की सरिता बहा दो, नेह का अब गीत गाकर”(“(महेश कुमार सोनी जी का)। इसी प्रकार ‘प्रणय व्याकरण’ (पुष्पा प्रांजलि जी की) हो या ‘द्वीप अभिसार के’ (सत्य प्रसन्न जी का), भक्ति गीत (अनुरागी जी का) हो या “माॅं शारदे का वरदान दो”(नवल किशोर जी का) हो बहुत निश्छल भाव से, अनुपम बिंब समेट रचे गये हैं। एक पत्रिका में यदि जीवन के विभिन्न रूप सुसज्जित होते हैं, तो वो सहज ही साहित्य की उत्कृष्ट कृति बन जाती है। इस पत्रिका में रचनाओं को अंत:करण की भावप्रवण अनुभूतियों से उकेरा गया है, तथा इसकी प्रकृति पाठक के वैचारिक स्तर के साथ-साथ मानसिक स्तर को भी स्पर्श करती है। जब हम आदरणीय ‘रशीद’जी की, ‘पंकज’ जी की, ‘चंद्र’ जी की, ‘मौज’ जी की, ‘मधु’जी की और ‘हीरा’ जी की ग़ज़लों को पढ़ते हैं तो लगता है, बिना लागलपेट जीवन के कई रूप अचानक सामने आ जाते हैं।
छंदों के अनंत भाव, सहजता के साथ अपनी परिपक्व उपस्थिति दर्शाते हैं। सरल, पठनीय भाषा, साहित्यिक उत्साह से परिपूर्ण, प्रकृति से लेकर संस्कृति तक को चित्रित करती हुई तथा व्याकरण सम्मत सिद्धांतों का अनुपालन करती हुई यह पत्रिका साहस के साथ चेतना जगाने की प्रेरणा देती है। मैं सभी साहित्यकारों को, उनकी साहित्य साधना की इस अनमोल कृति के लिए शुभकामनाएं देती हूॅं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पत्रिका पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में अवश्य ही सफल होगी।

स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव,
‘रश्मि लहर’
लखनऊ

4 Likes · 4 Comments · 1627 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

कर जतन बचें भौंरा तितली
कर जतन बचें भौंरा तितली
Anil Kumar Mishra
मात-पिता गुरु का ऋण बड़ा, जन्मों न चुक पाए
मात-पिता गुरु का ऋण बड़ा, जन्मों न चुक पाए
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सारा आकाश तुम्हारा है
सारा आकाश तुम्हारा है
Shekhar Chandra Mitra
जिंदगी
जिंदगी
अखिलेश 'अखिल'
हिन्दी गीति काव्य में तेवरी की सार्थकता। +सुरेश त्रस्त
हिन्दी गीति काव्य में तेवरी की सार्थकता। +सुरेश त्रस्त
कवि रमेशराज
शु
शु
*प्रणय*
पदावली
पदावली
seema sharma
परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता है आखिर क्यों ?
परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता है आखिर क्यों ?
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
. काला काला बादल
. काला काला बादल
Paras Nath Jha
सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
मैं खुद से ही खफा हूं ..
मैं खुद से ही खफा हूं ..
ओनिका सेतिया 'अनु '
मैं जो कुछ हूँ, वही कुछ हूँ,जो जाहिर है, वो बातिल है
मैं जो कुछ हूँ, वही कुछ हूँ,जो जाहिर है, वो बातिल है
पूर्वार्थ
4689.*पूर्णिका*
4689.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*नयनों में तुम बस गए, रामलला अभिराम (गीत)*
*नयनों में तुम बस गए, रामलला अभिराम (गीत)*
Ravi Prakash
शिक्षक उस मोम की तरह होता है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश
शिक्षक उस मोम की तरह होता है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश
Ranjeet kumar patre
उसकी कहानी
उसकी कहानी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
" रे, पंछी पिंजड़ा में पछताए "
Chunnu Lal Gupta
ऐ माँ! मेरी मालिक हो तुम।
ऐ माँ! मेरी मालिक हो तुम।
Harminder Kaur
खुशी
खुशी
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
वो हमें भी तो
वो हमें भी तो
Dr fauzia Naseem shad
कुछ रिश्ते कांटों की तरह होते हैं
कुछ रिश्ते कांटों की तरह होते हैं
Chitra Bisht
तितली
तितली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
प्रदुषण का प्रभाव
प्रदुषण का प्रभाव
Seema gupta,Alwar
*नए दौर में*
*नए दौर में*
Shashank Mishra
यही तो जिंदगी का सच है
यही तो जिंदगी का सच है
gurudeenverma198
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
!..................!
!..................!
शेखर सिंह
आज अचानक आये थे
आज अचानक आये थे
Jitendra kumar
बापक भाषा
बापक भाषा
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
13. Rain Reigns
13. Rain Reigns
Ahtesham Ahmad
Loading...