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7 Sep 2019 · 1 min read

समाज के ठेकेदार

चूर चूर कर डाले रिश्ते
समाज के ठेकेदारों ने
खुद के दोष रहे छिपाए
लगे औरों को उछलाने में
भावहीन भयमुक्त हो गए
लगे औरों को धमकाने में
छोटों को तहबीज रही नहीं
लगे बड़ों को अपमाने में
पढे लिखे मूर्ख बन गए लगे
कढे हुओं को समझाने म़े
दुख सुख म़े जो जुड़ते थे
लगे उनको तुड़वाने में
साक्षरों से अनपढ़ अच्छा
जो समझे बात अन्जाने में
कबीले नेता वो अच्छे थे
रखते थे बात जुड़ाने में
आज समाज प्रधान को देखो
रखते विशवास तुड़ाने म़े
अहम का सर नीचा होता है
समझो बात को सयाने में
किसी का बेहतर खर न सको
तो बचो बुराई कमाने में
भाई बहनों को अलग कर दिया
कमाया पाप नौजवानों नें
दुखी आत्मा माफ नहीं करेगी
मिलेगा फल इसी जमाने में
झूठ फरेब का उढावन पहने
लग गए हैं सच को छुपाने में
समय है अब भी सुधर जाओ
नहीं तो लग जाओगे पछताने में
द्वैष वैर स्वार्थों की राजनीति करते
समाज बाँटते हैं खण्डों विखण्डों मे
पूर्वजों की प्रतिष्ठा है खो दी
निज राजनीति चमकाने में
सामाजिक मूल्य बलि चढाए
निज की जिद फतवा मनवाने में
तोड़ना नही जोड़ना सीखो
समाज बचाएं टूट जाने से
विखन्डित को केन्द्रित करें
निज स्वार्थ द्वैष वैर भूल जाने में

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
Tag: कविता
3 Likes · 2 Comments · 2348 Views

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