==* समशान नजर आता है *== (गजल)
जर्रा-जर्रा इस घर का समशान नजर आता है
दर-दिवार से आंगन सुनसान नजर आता है !
जी रहा हूँ मगर बेख़ौफ़ मैं रोज इस घर में
देख कर आईना दिल परेशान नजर आता है !
जाने पतझड़ सी लगे डाली क्यों खुशियों की
रूठा रूठा सा मुझको भगवान नजर आता हैं !
ना है कोई मंजिल और ना कुछ हासिल यहाँ
मेरे ही घर वजूद मेरा मेहमान नजर आता है !
गर मिला “एकांत” कभी इस घर के साये में
तो अपना भी कोई कदरदान नजर आता है !
रोज जीता है “शशि” क्यों डर के परछाई में
अपनें ही जिंदगी से वो हैरान नजर आता है !
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शशिकांत शांडिले (एकांत), नागपुर
भ्र.९९७५९९५४५०