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4 May 2020 · 1 min read

समलैंगिकता और समाज

प्यार रूह से किया जाए तो प्यार कहलाता,
गर जिस्म से हो जाए तो समाज बीच में आ जाता,
जिंदगी जीने और प्यार चुनने का हक है गर हमें,,
तो यह समाज जाति प्रकृति की बंदिशें क्यूं लगता,
माना सोच थोड़ी अलग है और जिंदगी जीने का
नजरिया भी,
पर उनकी पसंद नापसंद पर अपनी सहमति की
मोहर लगाए
यह भी तो उचित नहीं,
मिले कई अधिकार उन्हें मौलिक अधिकारों के नाम
पर,
पर प्यार चुनने का हक नहीं उन्हें समाज के नाम पर,
देते अछूत का दर्जा उन्हें समलैंगिकता के नाम पर,
बेरहमी से मार भी डालते उन्हें समाज मर्यादा के नाम
पर
इंसानियत का सार है उनमें और इश्क़ का मर्म भी,
समान्य की तरह कम से कम दरिंदगी वो फैलाते तो
नहीं,
भले ही अलग है वो हमसे और सामान्य जिंदगी का
हिस्सा नहीं,
पर जुड़ नहीं सकते वो समाज से उनके साथ इंसाफी
भी तो नहीं,
जोड़ कर देखो उन्हें समाज से मुख्यधारा में यह खुद
आएगा,
गिराकर गंदी सोच की दीवार को यही साथ में हमारे
नया समाज बनाएगा।

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 1 Comment · 340 Views
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