सब दिन होते नहीं समान
इतनी सी है बस एक ख्वाहिश ,
कुछ पल मिल जाए सुकून भरे।
बहुत हो चुकी है यह दौड़ धूप,
मन है अशांत , चिंता को धरे ।।
सुबह की लालिमा दिखती नहीं,
ढलती शाम देखने को तरसते।
सब तरफ भीड़ की कोलाहल है,
कुछ पल चुराने दिनभर निहारते।।
खुश होकर अपने काम को करें,
मन को हर पल यही समझाते है ।
सब दिन होते नहीं है एक समान,
यहीं सोच सोच मन को बहलाते है।।