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11 Feb 2022 · 2 min read

सन्सतृप्ति

सन्सतृप्ति

भौतिक भोग से भरी मानव देह इंद्रियों के अधीन रहता है ।साधारण जनमानस को इनसे छुटकारा पाना असंभव है ।संतृप्ति का तात्पर्य इंद्रियों पर वश पाना है ,जो मानव इंद्रियों को वश कर लेता है, सर्व इच्छाओं का परित्याग कर देता है, वह देव तुल्य न होकर महामानव या योगी कहलाता है। उदाहरण के लिए मैं अपनी दृष्टिगोचर कथा लेख रूप में लिखती हूं। मेरे गांव के समीप सोलग नामक स्थान पर बाबा कल्याण दास उर्फ काले बाबा जी का आश्रम है। श्री श्री 1008 काले बाबा जी बहुत पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष थे।
उनकी पूरे भारत में अनगिनत अनुयाई एवं शिष्य हैं सोलग गांव से ही एक साधारण महिला भी उनकी शिष्या बनी। बाबा जी के सानिध्य में रहते हुए भी वैराग्य को प्राप्त हुई। अपने घर के काम से छुटकारा पाते ही वह आश्रम की सेवा में लग जाती। उसे तन- मन की सुध न रहती । वह काम करते हुए भी ध्यान में मग्न रहने लगी। कहने का तात्पर्य यह है कि भौतिक सुखों से दूर बेसुध भजन -कीर्तन में अनुराग हो गया। एक दिन की बात है कि आश्रम में जगराता -कीर्तन होना था। उसने अपने घर का जल्दी-जल्दी काम निपटाया और अन्य लोगों के साथ कीर्तन के लिए मंदिर आ गई। खूब कीर्तन भजन रचा बसा। भक्तिभाव में कई भक्त नृत्य करने लगे। वह भी नृत्य करने लगी और भजन में इतना खो गई कि नृत्य करते-करते अचानक गिर गई। जब अन्य महिलाएं उठाने के लिए उठी तो वह उठी नहीं और भगवान को प्यारी हो गई उनके प्राण पखेरू उड़ गये, परंतु बाबा जी ने सभी से आग्रह किया कि कोई भजन गायन को न रोके। यह ऐसा ही होना था। इसका आभास मुझे पहले से ही हो गया था। इन्होंने अपना सब कुछ भगवान को समर्पण कर दिया था‌ यह पहले ही दुनियादारी से दूर हो चुकी थी।

ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
127 Views
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