*सड़क बढ़ती ही जाती है 【हिंदी गजल/गीतिका】*
सड़क बढ़ती ही जाती है 【हिंदी गजल/गीतिका】
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सड़क कब खत्म होती है,सड़क बढ़ती ही जाती है
सड़क पर जो मिले- बिछुड़े हैं, उनकी याद आती है
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न जाने कौन-सी कॉलोनी में रहने चले आए
यहाँ पर सारा दिन गहरी उदासी सिर्फ छाती है
[3]
यहाँ पर फ्लैट में रहते हैं जो वह अजनबी हैं सब
अकेलेपन की यह हालत बहुत ज्यादा रुलाती है
[4]
मुझे भीतर ही भीतर थोड़ी गुमसुम-सी नजर आई
वही मॉडल जो सब के सामने बस मुस्कुराती है
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जिसे सोने की ईंटों को हमेशा ही पड़ा ढोना
बुरी किस्मत थी,खुशकिस्मत मगर खुद को बताती है
[6]
बना तो लोगे कोठी – बंगले निर्जीव ईंटों से
घरों को किंतु किस्मत ही है जो आकर बसाती है
[7]
तुम्हारे यह बड़े होटल हमें अच्छे नहीं लगते
दही का रायता आलू की सब्जी घर की भाती है
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451