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1 Mar 2017 · 1 min read

सच्चाई से मिल गया हु

दुनिया की नज़र मे मै गुम गया हु।
सच पुछो तो सच्चाई से मिल गया हु।

कभी शोलो से खेला करता था,
पर आज शबनम से जल गया हु।

गैरो से गले लग कर ईद और दिवाली मनाता रहा,
जमी पर चलने क्या, लगा कि अपनो को खल गया हु।

मुझे संभालना काफिलो का जिम्मा है,
पैर जख्मी है, फिर भी चल गया हु।

शाहीने परबाज मुझे ढुङो,
बजंर जमी मे भी खिल गया हु।
✍ राजेन्द्र कुशवाहा

Language: Hindi
Tag: मुक्तक
223 Views
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