सच्चाई का दर्पण…..

बिना मतलब
कोई नहीं होता किसीका
हो अगर जरूरत
तो देता है दिलासा..!
सच्चाई की देखो यहाँ
हो रही है तुलना
करे भी तो करे कैसे
किसका भरोसा…!!
अच्छाई कहाँ “सो” गई,
बुराई कर रही है राज यहां,
रहे भी कब तक अनजान
बेईमानी मार रही यहां..!!
फरेब की इमारत,
दिन-ब-दिन बढ़ रही
उचाईओ को अपना,
गुलाम बना रही..!!
करे यकीन किस पर और कैसे..
यकीनन धोखा “खा” रही..!!
कोई तो रोको….
ऐ स्वार्थीभरे युग को ज़रा
यहां कितनी जिन्दगिया बर्बाद हो गई..!!!!