सखी
??शीर्षक -सखी??
अरमानों को रोका था सालों से,
परिवार के लिए।
पर!अब जिम्मेदारी कम हुई,
जो था मेरे भीतर,कुछ करने की जिज्ञासा,
जो थी मेरे मन की आशा,
अब वो वक्त आकर,
सपने सच होने लगे,
घर में कैद थी में।
अवसाद से घिरी थी में,
तूने ही मुझे इससे बाहर किया,
क्या बताऊं तुझको मेरी सखी!
मुझको नया जीवन दान दिया,
जो हूं तुम्हारी वजह से हूं,
कैद बुलबुल को
आजाद किया।
अहसान मुझ पर बहुत है तेरा,
तुझे अनंत प्यार दूं मेरा ?
मुझको इक राह दिखा दी,
मुश्किल थे काटने,कठिन रास्ते,
मेरी जिंदगी आसान कर दी।
आजाद परिंदा हूं में।
तुमने ही मुझे राह दिखाई,
तुमने ही मुझे इक पहचान दिलाई।
तुम ही मेरे जीवन का आदर्श हो,
तुम ही मेरी जिंदगी का आशिर्वाद हो।।
सुषमा सिंह उर्मि