*ज्ञान मंदिर पुस्तकालय द्वारा हमारा अभिनंदन : वर्ष 1996*

*ज्ञान मंदिर पुस्तकालय द्वारा हमारा अभिनंदन : वर्ष 1996*
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एक दिन घर के दरवाजे की घंटी बजी । मैं बाहर गया । देखा शहर के प्रतिष्ठित 7 – 8 महानुभाव घर के दरवाजे पर उपस्थित थे। उन्हें आदर सहित ड्राइंग रूम में लाकर बिठाया तथा पिताजी को सूचना दी कि कुछ व्यक्ति आपसे मिलने आए हैं। मैं भला यह कैसे सोच सकता था कि वह मेरे अभिनंदन के सिलसिले में ही पधारे हैं !
पिताजी आए । आगंतुक महानुभावों ने अपने आने का कारण बताया । कहा “रवि प्रकाश जी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए ज्ञान मंदिर पुस्तकालय की ओर से सम्मानित करना चाहते हैं ।”
पिताजी ने तुरंत सहमति व्यक्त कर दी। मैं क्या कह सकता था ? नियत दिन और समय पर मैं ज्ञान मंदिर पहुंच गया । मेरा अभिनंदन हो गया और मैं अभिनंदन-पत्र लेकर घर आ गया । यह 1996 की बात है। करीब 25 साल बाद अलमारी को खँगाला तो वह अभिनंदन-पत्र अकस्मात प्रकट हो गया । जिन-जिन व्यक्तियों ने मुझे उस समय अभिनंदन के योग्य समझा ,उनका हृदय से आभार ।
ज्ञान मंदिर जब मिस्टन गंज में कूँचा भागमल के सामने पुराने पंजाब नेशनल बैंक की छत पर स्थित था ,तब मैं बचपन में वहाँ किताबें इशू कराने के लिए चला जाता था। “आनंद मठ” मैंने वहीं से लाकर पढ़ा था। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के और भी कई उपन्यास मैंने वहां से लाकर पढ़े थे । जीना चढ़कर जाया जाता था । जब मेरा अभिनंदन हुआ था तब उससे काफी पहले से ही ज्ञान मंदिर मिस्टन गंज के नए भवन में शिफ्ट हो चुका था ।
रामपुर में ज्ञान मंदिर का एक अपना तेजस्वी इतिहास रहा है । जब स्वतंत्रता सेनानी द्वय सर्वश्री सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट तथा नंदन प्रसाद जेल से छूटकर आए थे तब ज्ञान मंदिर पुस्तकालय में उनका अभिनंदन किया गया था अर्थात स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तियों के साथ-साथ ज्ञान मंदिर जैसी संस्थाओं का भी योगदान रहा है।
अभिनंदन पत्र में मेरा नाम “रवि प्रकाश अग्रवाल सर्राफ” लिखा गया था । मैं तो केवल रवि प्रकाश नाम से ही लिखता था, आज भी लिखता हूँ। “अग्रवाल” शब्द की खोज जब मैंने 2019 में की और तदुपरांत महाराजा अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल समाज पर अपना अध्ययन “एक राष्ट्र एक जन” पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया तब स्वयं को अग्रवाल कहने और बताने में मुझे अत्यंत गर्व का अनुभव होने लगा। मेरे नाम के साथ “सर्राफ” शब्द मेरे ईमेल में जुड़ा हुआ है । इसकी भी एक कहानी यह है कि रवि प्रकाश नाम से ईमेल नहीं बन रहा था। उसके साथ कुछ संख्या लिखनी पड़ रही थी, जो मुझे पसंद नहीं थी । “सर्राफ” शब्द लिखने से तुरंत ईमेल एड्रेस बन गया । इस तरह 1996 के अभिनंदन पत्र पर रवि प्रकाश अग्रवाल सर्राफ बिल्कुल सही लिखा गया था ।
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*लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 99976 15451*
Email : raviprakashsarraf@gmail.com