शुगर के मरीज की आत्मकथा( हास्य व्यंग्य )

शुगर के मरीज की आत्मकथा( हास्य व्यंग्य )
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साठ साल जिंदगी के हंसते खेलते मजे में गुजर गए। लेकिन इकसठवें साल में कलमुँही डायबिटीज जिंदगी के दरवाजे से धीरे से आ गई ।अब इस निगोड़ी के साथ सौ साल की जिंदगी में बाकी के चालीस साल काटने पड़ेंगे। जीवन के दो ही चरण होते हैं। एक वे जो बिना डायबिटीज के थे, दूसरे वह जो डायबिटीज के बाद थे। इस तरह मेरी जिंदगी दो हिस्सों में बँट गई। साठ साल से पहले और अब साठ साल के बाद। सुनने में तो डायबिटीज का नाम ऐसा लगता है जैसे कोई खूबसूरत अंग्रेज लड़की हो । लेकिन वास्तविकता यह है कि यह एक विषकन्या है , जो जिसके जीवन में आ गई, उसको नष्ट करके ही छोड़ती है।
बिना मीठे के जिंदगी भी कोई जिंदगी है ? अहा ! वह भी क्या दिन थे जब दावतों में मैं जाता था और एक तिहाई पेट चाट से भरता था ।बाकी दो तिहाई मिठाइयों और आइसक्रीमों से फुल करता था। अगर छह तरह की मिठाइयाँ हैं तो मजाल है कि मैंने किसी एक को भी छोड़ा हो। पहले गाजर का हलवा, फिर मूँग की दाल का हलवा, उसके बाद बादाम का हलवा । फिर यह जो गरम- गरम जलेबी उतर रही है, वह किसके लिए है ? वह भी तो मुझे ही खानी है। गरम इमरती पर मीठी रबड़ी का मेल ,क्या कहने ! अगर रसगुल्ला है तो वह भी खाया जाएगा और रसमलाई है तो उसे भी क्यों छोड़ें । प्रायः चार तरह की आइसक्रीमें होती हैं । मैं उन सभी का स्वाद लेता था ।
इतना सब खाने के बाद खाने की प्लेट भला कौन उठाता ! मैं उन सभी हलवाइयों से विनम्रता के साथ क्षमा माँगता हूं जो प्रति-प्लेट के हिसाब से दावत का ठेका लेते थे। और मेरे जैसे न जाने कितने मिठाईयों और आइसक्रीमों के प्रेमी उनकी प्लेट की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखते थे। जब आइसक्रीमें और मिठाइयाँ भरी हुई हों तो कचौड़ी और रोटी की तरफ कोई क्यों देखेगा ?
अब भी दावतों में पेट तो तैंतीस प्रतिशत चाट से भरने का क्रम बना रहेगा । हालांकि उसमें भी मुझे कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा। गोलगप्पे मीठे पानी की बजाए खट्टे पानी के लेने पड़ेंगे यद्यपि वह मुझे बहुत ज्यादा पसंद नहीं हैं। लेकिन क्या करें ,मजबूरी है।आलू की टिकिया में तो खट्टी चटनी डलवाकर मेरा काम चल जाएगा, लेकिन मैं दुखी इस बात से हूं कि मुझे दहीबड़ा लेते समय यह कहना पड़ेगा कि इसमें सौंठ मत डालना ! सोच कर कलेजा मुँह को आता है । मैं यह भी सोचता हूँ कि जब मैं हलवाई से कहूंगा कि मेरे दहीबड़े में सौंठ मत डालना , तो वह मुझे कितनी दयनीय दृष्टि से देखेगा !
अभी कल की बात है। एक सज्जन खुशी के मौके पर एक किलो मिठाई का डिब्बा दे गए। बोले साहब !खुशी से स्वीकार कीजिए । मैंने दिल में सोचा काहे की खुशी! मिठाई में भी कोई खुशी होती है ? दालमोठ का डिब्बा देते तो ठीक था । लेकिन फिर भी औपचारिकतावश नकली हँसी हँसकर उनसे मिठाई का डिब्बा लिया और किसी अजनबी की तरह उसे एक कोने में घर के ले जाकर रख दिया । अब मिठाई के डिब्बे से हमारा क्या रिश्ता !
प्रसाद में हलवा या मिठाई बाँटने का प्रचलन है । मैंने एक बार सोचा कि क्यों न मठरी या दालमोठ बाँटी जाए। लेकिन कहने का साहस नहीं हुआ । क्योंकि यह परंपरा के विपरीत होता ।
मैं जानता हूँ कि मौहल्ले में अनेक लोग ऐसे हैं, डायबिटीज जिनके गले पड़ चुकी है। सच तो यह है कि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पचपन साल से ज्यादा की उम्र के पचपन प्रतिशत लोगों को शुगर की बीमारी है । अगर विश्वास न आता हो तो मुफ्त में शुगर चेक करा कर देख लो ।लेकिन कोई बताना नहीं चाहता । सब लोग शुगर के मरीज होते हुए भी चीनी से बनी हुई मिठाईयाँ और आइसक्रीमें ढेरों खाते जा रहे हैं। यह स्थिति ऐसे ही है जैसे कोई अस्सी साल का बूढ़ा अपने बालों पर काले रंग की डाई लगाकर बाजार में घूमे और स्वयं को नवयुवक बताता रहे। कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि उसे शुगर है ।
सब अपने आप को धोखा दे रहे हैं और अपने बारे में भ्रम फैला कर डायबिटीज रूपी विषकन्या को गले से लगाए हुए हैं। कई लोगों को तो जिनको दो सौ फास्टिंग है यह कहते सुना गया है कि नहीं भाई, हमें कोई शुगर की बीमारी नहीं है । जब मैं कहता हूं कि मुझे फास्टिंग एक सौ बारह है , तब डायबिटीज के पेशेंट कहते हैं ” नहीं ! यह तो कोई शुगर नहीं होती”। मैं मुस्कुरा देता हूॅं।
एक दोहा निवेदन है:-
जीवन में दो ही हुए , सच पूछो तो दौर
शुगर नहीं तो और था, बाद शुगर के और
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451