शीर्षस्थ गीतकार श्री भारत भूषण की आत्मीयता*
शीर्षस्थ गीतकार श्री भारत भूषण की आत्मीयता(संस्मरण)
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*सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक* *के संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी* के संपर्क जिन कवियों और लेखकों से बहुत घनिष्ठ थे, उनमें एक नाम *मेरठ निवासी* श्री भारत भूषण का भी था । इस नाते भारत भूषण जी का सहज और स्वाभाविक स्नेह मुझे प्राप्त होने लगा। रामपुर – नुमाइश के कवि सम्मेलनों में मुझे श्री भारत भूषण जी को सुनने का अवसर मिला । महेंद्र जी के श्रीमुख से अनेक बार उनके व्यक्तित्व की सरलता तथा आत्मीयता का वर्णन मैंने सुना था। जब दर्शन हुए और बातचीत हुई ,तब उन्हें वैसा ही पाया ।
समय-समय पर भारत भूषण जी का आशीर्वाद मेरे लेखन के संबंध में मुझे मिलता रहा । *1990* में जब मेरा पहला कहानी संग्रह *रवि की कहानियाँ* प्रकाशित हुआ और मैंने उन्हें डाक से भेजा, तब उनकी प्रतिक्रिया उस समय मुझे प्राप्त हुई जब वह रामपुर नुमाइश के कवि सम्मेलन में रामपुर पधारे थे । महेंद्र जी के घर पर आए थे और घर पर ही मेरी उनसे मुलाकात हुई थी । उन्होंने कहानी संग्रह के संबंध में दो पत्र महेंद्र जी को दिए थे । एक पत्र के बारे में कहा “यह अखबार में छाप दीजिएगा ” तथा दूसरे पत्र के बारे में कहा कि ” यह रवि पढ़ लें। ” वास्तव में मूल्यवान तो दूसरा पत्र था ,जिसमें उन्होंने अपने हृदय के उद्गार विस्तार से व्यक्त किए थे । इसमें कहानी की विशेषताओं का पृष्ठ संख्या उद्धृत करते हुए जहाँ उल्लेख किया गया था ,वहीं उन्होंने मन की कुछ ऐसी बातें भी लिखी थीं जो किसी भी नए लेखक के लिए बहुत मूल्यवान होती हैं। समझाने वाले लोग, गलतियाँ सुधारने वाले लोग और हाथ पकड़ कर सही रास्ते की ओर ले जाने वाले लोग संसार में दुर्लभ होते हैं । पिता ,माता और गुरु की संज्ञा ऐसे ही व्यक्तियों को दी जाती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य से जीवन में आते हैं और उनकी कृपा असाधारण रूप से फलदायक होती है। भारत भूषण जी ऐसे ही वरदान स्वरुप व्यक्तित्व थे।
भारत भूषण जी ने पत्र में लिखा था कि मैं रवि से बहुत स्नेह करता हूँ और सचमुच उनका वह पत्र उसी अपार स्नेह का सूचक था । जब भी मैं उनका स्मरण करता हूँ, तब मुझे लगता है कि इतना प्रेम करने वाला व्यक्ति संसार में कोई दूसरा भला क्या मिल सकता है ?
मेरी पुस्तक *निष्काम कर्म* 2008 में प्रकाशित हुई ,तब भी उनका एक पत्र मेरे संग्रह में है । जिसमें उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया था । इसी में *काव्य कठोपनिषद* पर भी उनका आशीष मिला है। *23-10- 2008* के इस पत्र में उन्होंने आशीर्वाद दिया:-
*” प्रिय श्री रवि प्रकाश जी 2 दिन पहले निष्काम कर्म पुस्तक प्राप्त हुई और मैं लगभग पूरी पढ़ चुका हूँ। पहले कठोपनिषद भी पढ़ी थी । आप अब समर्थ लेखक और कवि बन गए हैं । यह साधना अनवरत चलती रहे । श्रद्धेय रामप्रकाश जी की जीवनी व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन ही है । आपने बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत की है । मेरी बधाई स्वीकारें । श्री महेंद्र जी को सप्रेम नमस्ते कहें। सप्रेम भारत भूषण*
उनका अंतिम पत्र मेरे लेखन के संबंध में सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक की *प्रभारी संपादिका श्रीमती नीलम गुप्ता* के नाम *29-8-2011* में आखरी बार प्राप्त हुआ था । यह *रामपुर के प्रसिद्ध संत सुभान शाह मियाँ की दरगाह* पर मुझे प्राप्त होने वाले अनुभवों के संबंध में था। भारत भूषण जी को इन अनुभवों ने आकर्षित किया और वह इनके प्रति अपने प्रेममय उद्गार को प्रकट किए बिना नहीं रह सके । उन्होंने लिखा :-
*” शुभश्री नीलम जी सहकारी युग प्राप्त हुआ । रवि प्रकाश जी द्वारा सुभान शाह मियाँ का एक अनुभव पढ़कर मैं पुलकित हो गया । कुछ दिन से मैं स्वयं संतों और दरवेशों के पवित्र स्थानों से जुड़ गया हूँ। बहुत आनंद आता है इन सब में । अफसोस यह है कि पहले इतनी बार रामपुर आकर भी कभी इस समाधि तक जाने का अवसर नहीं मिला । किसी से चर्चा भी नहीं हुई । मैं यहाँ कल्पना में ही पूज्य बाबा लक्ष्मण दास और पूज्य सुभान साहब मियाँ को अपने प्रणाम और चरण- स्पर्श निवेदन कर रहा हूँ। सहकारी युग बहुत अच्छा और लोकप्रिय हो रहा है ।आपका सभी का परिश्रम सफल है महेंद्र जी को मेरी नमस्ते कहें । आपका भारत भूषण “*
भारत भूषण जी बहुत मधुर कंठ से काव्य पाठ करते थे । उनके काव्य में गहराई थी तथा उसका रसास्वादन मौन रहकर ही किया जा सकता था । कवि सम्मेलनों को उनकी उपस्थिति ने एक अभूतपूर्व गौरव – गरिमा प्रदान की थी । उनका स्मरण हमारे सार्वजनिक जीवन में एक ऐसे व्यक्ति का स्मरण है जो भीतर और बाहर एक जैसी जिंदगी जीने वाला ,सरल और सादगी – पसंद तथा सब प्रकार के छल – कपट से दूर रहने वाला अंतर्मुखी व्यक्तित्व था । वह धन के आकर्षण तथा प्रसिद्धि के लोभ से आगे बढ़ चुके थे । उनकी स्मृति को शत – शत प्रणाम ।
*लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
_मोबाइल 99976 15451_
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*श्री भारत भूषण का पत्र*
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*8 – 5 -90*
*प्रिय महेंद्र जी*
*नमस्कार*
*प्रिय रवि की कहानियाँ पढ़ीं।* उनमें बहुत सुंदरता से समाज की विविध मानसिकता का चित्रण किया गया है । कुछ बहुत अच्छे अंश हैं। मैंने नोट कर लिए हैं ।जैसे
*पृष्ठ 19* तैरती लाशों के बीच एक जिंदा समझ अभी जवान है
*प्रष्ठ 27* गर्मियों की रातें काटना … नहीं है ।
*पृष्ठ 28* रात के अंधेरे में कमाया धन … नसीब ।
*पृष्ठ 46* सचमुच आदमी … हो गई ।
*पृष्ठ 49* संसार में मृत्यु … बाप मर गया है ।
*पृष्ठ 50* तुम इतनी जिद कर … चल बसा ।
*पृष्ठ 73* आपको तो.. पूछ नहीं थी ।
*पृष्ठ 75* जीवन की कठोर ..पाया जा सकता ।
*पृष्ठ 77* मुझे तो शाहजहाँ…. बेटे बहू ने।
*पृष्ठ 89* लोग चाहते हैं …कुछ हो ।
*पृष्ठ 89* पर देवत्व … आतुर रहती हैं ।
*पृष्ठ 96* हर बार… हो जाती है ।
यह ऐसे अंश हैं जो रवि जी को एक अच्छी ऊँचाई तक ले जा सकते हैं। मैं मूलतः कवि हूँ, इसलिए गद्य – लेखन के बारे में मेरी दृष्टि शायद कमजोर हो । किंतु फिर भी इस संग्रह की भावगत और वाक्यों के विन्यास की कुछ कमियों पर पुस्तक में ही निशान लगाए हैं। मैं चाहता हूँ कि उन पर रवि जी से ही बात हो तो अच्छा है । *वैसे मैंने वर्षों से यह निश्चय किया हुआ है कि किसी को भी उसकी कमियाँ नहीं बताऊँगा । उसका अनुभव अधिकतर कड़वा रहा है ।* *प्रिय रवि को मैं बहुत स्नेह करता हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि यह प्रारंभिक दोष अभी दूर हो जाएँ, फिर आदत पड़ जाएगी इनकी ही ।* अब रिटायर भी हो रहा हूँ। इसलिए समयाभाव तो रहेगा नहीं । रामपुर अब मुझे भूल गया है। सम्मेलन अब पराए हो गए हैं भ्रष्ट हो गए हैं मैं क्योंकि भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, केवल इसी लिए निमंत्रण कम हो गए हैं।
अभी कुछ पूर्व आपके पत्र में रिपोर्ट पढ़ी थी कि शशि जी की स्मृति में सम्मेलन हुआ था । दुख भी हुआ आश्चर्य भी कि मुझे नहीं बुलाया जबकि शशि जी मुझे भी बहुत स्नेह करते थे ।
मैं रामपुर आऊँगा किसी दिन ,केवल रवि जी से बात करने । अभी गर्मी बहुत है। 1 – 2 बारिश हो जाए। गर्मी के कारण अभी अभी एक सप्ताह में डिहाइड्रेशन से उठा हूँ। 5-6 कार्यक्रम ,एक दूरदर्शन का भी था, छोड़ दिए । *कौन पैसे के लिए मरता फिरे ! यह वृत्ति आरंभ से ही रही । प्रभु कुछ अच्छा लिखाते रहें, ये ही बहुत है ।मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ, इसी में ही।* प्रिय रवि को मेरा स्नेह । बच्चों को आशीष। संभव हो तो पत्र दें।
*सप्रेम*
*भारत भूषण*