शिछा-दोष
भूल गये हम मर्यादा-मापदन्ड!
वाचाल जगत हो गया उदन्ड!!
मॉ-बाप तिरस्कृत ढूँढें आलम्ब,
संयुक्त परिवार हुये खंड-खंड!!
शिछा-दोष पारिवारिक विग्रह,
दे रहा हमको अहंकार अखंड!!
गुरू-शिष्य परम्परा है विलुप्त,
भ्रमित शिछा-निष्ठा का मापदंड!!
नारी ने नरसिंह रूप पाकर किए,
न जाने कितने घर – आंगन विखंड !!
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित बोधिसत्व कस्तूरिया अधिवक्ता कवि पत्रकार 202 नीरव निकुंज Ph2 सिकंदरा आगरा उत्तर प्रदेश