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9 Oct 2016 · 1 min read

*शासन का संयोजन बदलो*.

सूरज,
जो हमसे है दूर, बहुत ही दूर।
और फिर चलने से मजबूर,
पंगु बिचारा, हिलने से लाचार,
करेगा कैसे तम संहार।
जिसके पाँव धरा पर नहीं,
रहे हो रंग महल के नील गगन में।
उसको क्या है फ़र्क,
फूल की गुदन, और शूल की खरी चुभन में।
जो रक्त-तप्त सा लाल, दहकता शोला हो,
वो क्या प्यास बुझाएगा, प्यासे सावन की।
जिसका नाता, केवल मधु-मासों तक ही सीमित हो,
वो क्या जाने बातें, पतझर के आँगन की।
जिसने केवल दिन ही दिन देखा हो,
वो क्या जाने, रात अमाँ की कब होती है।
जिसने केवल दर्द प्यार का ही जाना हो,
वो क्या जाने पीर किसी वेवा की कब रोती है।
तो, सच तो यह है –
जो राजा जनता से जितना दूर बसा होता है,
शाशन में उतना ही अंधियार अधिक होता है।
और तिमिर –
जिसका शाशन ही पृथ्वी के अंतस में है,
कौना-कौना करता जिसका अभिनन्दन है।
दीपक ही –
वैसे तो सूरज का वंशज है,
पर रखता है, तम को अपने पास सदा।
वाहर से भोला भाला,
पर उगला करता श्याह कालिमा,
जैसे हो एजेंट, अमाँ के अंधकार का।
और चंद्रमा-
बाग डोर है, जिसके हाथो, घोर रात की,
पहरेदारी करता – करता सो जाता है,
मीत, तभी तो घोर अमावस हो जाता है।
तो, इसीलिए तो कहता हूँ,
शाशन का संयोजन बदलो।
और धरा पर, नहीं गगन में,
सूरज का अभिनन्दन कर लो।

… आनन्द विश्वास

Language: Hindi
408 Views
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