*शादी के वह सेहरे (कुंडलिया)*

*शादी के वह सेहरे (कुंडलिया)*
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शादी के वह सेहरे ,अब अतीत की याद
सदी गई जब बीसवीं ,हुए न उसके बाद
हुए न उसके बाद ,काव्य थे कविवर लिखते
मधुर स्वरों में पाठ ,लोग सुनते थे दिखते
कहते रवि कविराय , बताते दादा – दादी
बिना सेहरा – गीत , नहीं होती थी शादी
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*रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
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