*शादी के खर्चे (कुंडलिया)*

*शादी के खर्चे (कुंडलिया)*
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शादी के खर्चे बढ़े , मँहगा होटल भोज
इसकी खातिर श्रम किया,कितने वर्षों रोज
कितने वर्षों रोज , सोच कर देखो भाई
जोड़े रुपै तमाम , कर्ज की नौबत आई
कहते रवि कविराय , नहीं हो यूँ बर्बादी
सोच-समझ के साथ ,खर्च में करिए शादी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1