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6 Sep 2024 · 1 min read

शहर में आग लगी है

शहर में आग लगी है लोग सुलग रहे हैं
जहर है फिजाओं में लोग उगल रहे हैं

न हवा न धुआं है और आग लगी है
दिन है सोया सा और रात जगी है

मंजिल भटक रही न जाने किधर है
रास्ते चल रहे और राही स्थिर है

सागर बिखर रहा दिशाएं जुड़ रही हैं
आसमां गिर रहा धरा उड़ रही है

सब कुछ है पास वो महफूज नहीं है
ढूँढते है उसको जो मौजूद नहीं है

सियार सड़कों पे जंगल में आदमी है
खून रंग बदल रहा सांसें थमी हैं

‘V9द’ लिख रहा कागज न कलम है
पढ़ने वाला सोचे ये कौनसा भ्रम है

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