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7 Sep 2022 · 1 min read

व्यथा

ऐ नींद तू आती क्यों नही ?
आँखें तरस गयीं तेरे आगोश को ।
यहां बाहर-भीतर सब तरफ
बस शोर ही शोर है ।
मस्तिष्क की नसें खिंच रही हैं
आँख बन्द तो करती हूँ
पर हृदय की उथल पुथल
इन्हे बन्द रहने नहीं देती
मैं खुलकर रोना चाहती हूँ।
पर मेरा अपना कोई कोना नहीं
जहाँ मैं स्वयं से मिल सकूँ ।
सभ्यता ने मेरी आवाज़ की
रिवाजों की आड़ ले
गले में ही हत्या कर दी ।
मौन व विवश तमाशबीन सा
मैं ये नृशंसता देख रहीं हूँ
ताकि मेरे अपनो पर
समाज कटाक्ष न करे
या अंगुलियाँ न उठे ।
कब से ये जिद्दी प्रतिमान
यूँ ही मानवता पर प्रहार कर रहे
अब तो बस इतंजार है कि
कोई तो अवतरण होगा
जो इस सभ्यता की बर्बरता से
मानवता को बचाएगा ।

Language: Hindi
Tag: कविता
4 Likes · 10 Comments · 113 Views

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