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3 Jun 2023 · 2 min read

वो पुराने सुहाने दिन….

आज फिर आँखों के आगे
यादों के बादल छा गए
वो सुहाने पुराने दिन याद आ ग‌ए
बरबस ही
कुछ आंसू पलकों तक आए
सामने टंगी तस्वीर
मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी
कहीं न कहीं मेरे एकाकीपन पर
खिलखिला कर हँस रही थी
क्योंकि मैं उस तस्वीर में
दादी को काम करते देख
मुस्कुरा रही थी और
माँ नन्हें को पीठ पीछे खड़ा कर
पूरियां तल रही थी
कितना अच्छा लग रहा था
मेरा पीहर सपनों का
महल लग रहा था
ऊपर से पापा का ये कहना
इससे काम मत करवाना
ससुराल से थकी आई है बिटिया
थोड़े दिन इसके नाज़ नखरे उठा लेना
कोई हर्ज नहीं है इसमें
बेटी तू मेरे आंगन की महकती
महुआ कली सी है
नाजुक सी
दर्पण के सामने बाल सँवारते
पापा की ये बात
खुद को खास होने का
कराती फिर अहसास सी है
दादी का मुझको दुलार से देखना
और मनुहार कर-कर के
पकवान खिलाना
लगता जैसे
परियों के देश की राजकुमारी की
अपनी अलग कहानी है
अब वो शब्द सुनने को नहीं मिल रहे
जहाँ माँ काम करवाने के लिए
पड़ी पीछे रहती है
कुछ काम सीख ले
कुछ काम कर ले
शृंगारू घोड़ी बनी फिरती है
लगता है ससुराल से
उलाहनों के सिवाय
हमें हासिल होनी कुछ अच्छाई नहीं है
वहीं पापा और दादी का
मेरी ओर से बोलना
माँ को मन ही मन अखरता है
पर क्या करें
शिक्षा के बूंद-बूंद से ही तो घड़ा भरता है….
अरे इसे तंग मत करो
सब कुछ सीख जायेगी
मेरी बेटी है
ससुराल में टिक जायेगी
अचानक आँसू
बारिश से बरसने लगते हैं
और मेरा आँचल
भीगने लगता है
मेरी गोदी का
गोपाल रोने लगता है
त्यौंहार पर एकल परिवार का
दर्द दरकने लगता है
काश……
दादी फिर दुलार करें
माँ आँचल में मेरी गलतियां सँवार दे
पापा फिर मेरे हक में संवाद करें
छुटका और ननकू
बस खाना बनने का इंतजार करे
और
जब पूरे पकवान बन जाए तो
हम भाई-बहन फि
खाने पर टूट पड़े…….
काश ऐसा एक दिन फिर आए….
काश ऐसा एक दिन फिर आए………

संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)

106 Views
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