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9 Jan 2022 · 1 min read

‘वृद्ध हाथों को न छोड़ो’

जीत लो रिश्तों की बाजी, कुछ ज़रा झुक जाओ अब!
गर उपेक्षित हो रहे अपने, तो फिर रूक जाओ बस!

झाॅंक लो कुछ पास में, बहते नयन हैं तो नहीं?
दर्द से रोते-बिलखते कुछ सपन हैं तो नहीं?

रख तनिक सा ख्याल लो औ..खुद को कुछ समझाओ बस!
जीत लो रिश्तों की बाजी, कुछ ज़रा झुक जाओ बस!

विरह उनका भी तुम्हें खल जायेगा, है तय यही
वृद्ध हाथों को न छोड़ो, उनका बस है भय यही

याद कर शैशव पुराना, उनको तुम दुलराओ बस!
जीत लो रिश्तों की बाजी, कुछ ज़रा झुक जाओ बस!

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 269 Views
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