Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Apr 2024 · 1 min read

“विश्वास का दायरा”

“विश्वास का दायरा”
आदमी का अनुपात
बेशक बढ़ रहा
एक दो चार आठ
सोलह बत्तीस…ऐसे ही
पर क्या
विश्वास का दायरा भी
ऐसे ही बढ़ रहा?

4 Likes · 3 Comments · 109 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr. Kishan tandon kranti
View all
You may also like:
4217💐 *पूर्णिका* 💐
4217💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
बेटियां होती है पराई
बेटियां होती है पराई
Radha Bablu mishra
गुस्सा
गुस्सा
Sûrëkhâ
हाथ में कलम और मन में ख्याल
हाथ में कलम और मन में ख्याल
Sonu sugandh
प्रार्थना(हनुमान जी)
प्रार्थना(हनुमान जी)
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
उतार देती हैं
उतार देती हैं
Dr fauzia Naseem shad
कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं है मुझे अब, कोई हमनवा हमनिवाला नहीं है।
कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं है मुझे अब, कोई हमनवा हमनिवाला नहीं है।
*प्रणय*
दोस्त,ज़िंदगी को अगर जीना हैं,जीने चढ़ने पड़ेंगे.
दोस्त,ज़िंदगी को अगर जीना हैं,जीने चढ़ने पड़ेंगे.
Piyush Goel
गजल ए महक
गजल ए महक
Dr Mukesh 'Aseemit'
नाइजीरिया में हिंदी
नाइजीरिया में हिंदी
Shashi Mahajan
अंधविश्वास से परे प्रकृति की उपासना का एक ऐसा महापर्व जहां ज
अंधविश्वास से परे प्रकृति की उपासना का एक ऐसा महापर्व जहां ज
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
हार हमने नहीं मानी है
हार हमने नहीं मानी है
संजय कुमार संजू
*सुनो माँ*
*सुनो माँ*
sudhir kumar
महकती यादें
महकती यादें
VINOD CHAUHAN
सच तो जीवन में शेड का महत्व हैं।
सच तो जीवन में शेड का महत्व हैं।
Neeraj Agarwal
തിരക്ക്
തിരക്ക്
Heera S
एक महिला अपनी उतनी ही बात को आपसे छिपाकर रखती है जितनी की वह
एक महिला अपनी उतनी ही बात को आपसे छिपाकर रखती है जितनी की वह
Rj Anand Prajapati
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
Anand Kumar
"बगैर तुलना के"
Dr. Kishan tandon kranti
मातर मड़ई भाई दूज
मातर मड़ई भाई दूज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
हस्ती
हस्ती
Shyam Sundar Subramanian
बढ़ती हुई समझ
बढ़ती हुई समझ
शेखर सिंह
मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
Sunil Maheshwari
सुनो विद्यार्थियों! पुस्तक उठा लो।
सुनो विद्यार्थियों! पुस्तक उठा लो।
भगवती पारीक 'मनु'
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - १)
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - १)
Kanchan Khanna
मुक्तक - जिन्दगी
मुक्तक - जिन्दगी
sushil sarna
परिवार हमारा
परिवार हमारा
Suryakant Dwivedi
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
The_dk_poetry
*डॉ. सुचेत गोइंदी जी : कुछ यादें*
*डॉ. सुचेत गोइंदी जी : कुछ यादें*
Ravi Prakash
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
Kumar lalit
Loading...