*विधायकी में क्या रखा है ? (हास्य व्यंग्य)*

विधायकी में क्या रखा है ? (हास्य व्यंग्य)
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सच पूछो तो न विधायक बनने में कुछ रखा है और न सांसद बनने में ! दोनों ही पद व्यर्थ हैं। सत्य की खोज में व्यक्ति कभी विधायक बनता है ,उसके बाद विधायकी छोड़कर सांसद बन जाता है । फिर सांसदी छोड़कर फिर विधायक का चुनाव लड़ता है ,मगर शांति नहीं मिलती ।
शांति का असली निवास मंत्री पद है ।जिस की सरकार है ,उस की पांचों उंगलियां घी में हैं। वरना चाहे विधायक हो या सांसद, कोई पूछने वाला नहीं है । आदमी सड़क पर अकेला घूमता है और घर पर दो पराँठे खा कर सो जाता है तथा अपने को भाग्यवान मानता है । सदन में भाषण देने के अतिरिक्त सांसद और विधायक के पास अधिकार नाम की कोई चीज नहीं है । जनता के क्या काम बेचारा करा सकता है ? वह खुद बेचारगी की स्थिति में होता है ।
विपक्ष के विधायक और सांसद की तो और भी दुर्गति है । न उसकी सरकार सुनती है ,न प्रशासन सुनता है । जनता उसके पास शुरू के एक-दो साल तक समस्याओं का पुलंदा लेकर जाती है और निराश होकर लौट आती है । फिर उसके बाद जाना बंद कर देती है । बेचारा विधायक सुबह से शाम तक मक्खी मारता है । और वह कर भी क्या सकता है ? किसी का बाल भी बांका करने की उसकी स्थिति नहीं होती।
सत्ता पक्ष में भी अगर कोई विधायक या सांसद बन गया तो कौन सा तीर मार लेगा ? सत्ता केवल मंत्री पद में ही निहित होती है । या तो मंत्री या फिर बाकी सब संतरी । स्थिति यही है । जनता बेचारी शुरू के कुछ आम चुनावों में यही समझती रही कि हम विधायक और सांसद जिसको चुनेंगे, वह हमारा भाग्य विधाता बन जाएगा और हमारा भला करके हमें स्वर्ग जैसी सुविधाएं प्रदान करा देगा । लेकिन धीरे-धीरे जनता भी समझदार होती रही और नेतागण उसको मूर्ख नहीं बना पा रहे ।
आज सबके सामने स्थिति साफ है। मतदाता समझ चुका है कि उसे विधायक या सांसद नहीं चुनना होता है ,बाकायदा सीधे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए बटन दबाना पड़ता है । जिसको जो पसंद है, वह अपनी पसंद के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चुन ले । लोकतंत्र में सारी शक्ति सरकार के हाथों में है । जैसा सरकार चाहेगी ,वैसा देश और प्रदेश बनेगा । इसलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है कि चुनाव में टिकट किसे मिला अथवा किस पार्टी के टिकट पर कौन व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है ? किसी का कोई महत्व नहीं है । सब शतरंज के मोहरे हैं । असली ताकत सरकार में है।
जब मतदान वाले दिन वोट देने जाओ तो यह पहले सोच लो कि तुम्हें किस पार्टी की सरकार बनानी है ? मुख्यमंत्री किसे बनाना चाहते हो ? तथा देश के प्रधानमंत्री के रूप में तुम्हारी पसंद क्या है ? बाकी सब तो पार्टी का व्हिप जारी होता है और वह नियमानुसार सारे काम तुम्हारे चुने हुए विधायक और सांसद से करा लेगा ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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