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21 Aug 2019 · 1 min read

विधाता छंद

विधा – विजात छंद
विषय – उर्मिल व्यथा
********#सादर_समीक्षार्थ*************

कहूँ पीड़ा लखन प्यारे।
तुम्हें ढूंढे नयन हारे।।

गये तुम संग रघुवर के।
कि सेवक हो सिया वर के।।
सभी रहते वहाँ वन में।
हमें बस छोड़ क्रन्दन में।।

विरह में हम हुए कारे।
कहूँ पीड़ा लखन प्यारे।।

पिया नयना तरसते है।
दिवस रैना बरसते हैं।।
तड़पती हूँ व्यथित होती।
कि जैसे कोकिला रोती।।

नयन जल बह गये सारे।
कहूँ पीड़ा लखन प्यारे।।

सुमित्रा सुत चले आओ।
निरखि उर्मिल दशा जाओ।।
नहीं उर में तनिक चैना।
बरसते मेघ जस नैना।।

कि पथ देखत जिया हारे।
कहूँ पीड़ा लखन प्यार रे।।
#स्वरचित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 327 Views

Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'

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