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26 Apr 2020 · 1 min read

((((विद्धवान–सैंटा जैसा दिल))))

?(((((((((((विद्धवान))))))))))?

सैंटा जैसा दिल कहाँ से लाऊं इंसान हूं,,
नफरत में सेक रहा हुं सर्दी,,चार दिन का
मेहमान हूं.

कूडेदान सी सोच है मेरी चाहे कितना भी
धनवान हूं,,
उठा के पत्थर सर ही तोडूंगा चाहे कितना
भी गुणवान हूं।

मजहब के नाम पे ही लड़ना है मैंने,,
चाहे कितना,कितना भी विद्धवान हूं।

मुझे नही पता क्या है मुद्दा,,क्या है बात,
फिर भी तलवार उठाये दौड़ पड़ा कितना
अनजान हूं।

मुझे नही जचता अपने घर के आगे बेगाना
मंदिर मस्जिद,
मैं तो सिर्फ अपने मजहब का ग़ुलाम हूं।

छोटा सा दिल है मेरा नहीं सह सकता किसी
और की शोहरत,,मैं वो बदनाम इंसान हूं।

एक ही मुल्क है भारत मेरा,,इसी में बसा रखा
मैंने टुकड़ों टुकड़ों में अफगानिस्तान,, पाकिस्तान
और हिंदुस्तान हूं।

ना बनायो मुझे सैंटा जैसा दिल,,में दिल नहीं
इंसानियत का कब्रिस्तान हूं।

ज़िन्दा जल रही इंसानियत की चिता पे फूल
चढ़ाता हूं,मैं नाचता ऐसा शमशान हूं।

सैंटा जैसा दिल कहाँ से लाऊं इंसान हूं
इंसान हूं मैं इंसान हूं।

✍️6.1aman??

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 3 Comments · 357 Views
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