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5 Oct 2016 · 1 min read

विचारो की गंगा

कब से मेरी रगो मे तू घूमती रही
प्रतिकूलता के कारण बाहर न आ सकी
ऐ मेरे विचारो ,जज्बातो की गंगा!
तू जगह जगह पहुंची पर
संगम से न मिल सकी

गंगोत्री से निकली तू, तो बहुत पवित्र थी
सैकडो मिले तुझसे, मिलकर प्रणाम किया
सैकडो ने सराहा,बहुतो ने तेरे सामने खुद को खाली किया
पर जायें कहां,ढूढें कहां वो विशाल जलराशि
जिसके आगोश मे समाकर लगे
कि गंगा ने संगम ,संगम ने समन्दर पा लिया
मेरी रगो मे दौड कर क्या तू थकती नही
मुझे छोडकर एक पल क्या तू जा सकती नहीं
कुछ देर रहने दे मुझे ,अपने बगैर अकेला
देखूं तो तुम बिन जिन्दगी भाती है या नहीं

Language: Hindi
254 Views
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