वह निर्भया सवाल करती है
यह पांडव कितने किस्मत वाले हैं
स्वयं भगवान सदा उनके साथ रहे
पांडव पुत्रों ने हार नहीं मानी
जीवन संघर्ष में गुजार दिया।
दुर्योधन, शकुनि के छ्ल ने
सदा पांडव पुत्रों को दुत्कार दिया
पांडव को मारने, हराने नित – नित प्रयास हुआ
जिनके रक्षक स्वयं भगवान हैं
यह प्रयास सदा निष्फल हुआ।
यह प्रयास निष्फल हुआ
धर्म में सदा रहे पांडव
भगवान ने उनका साथ दिया
दुर्योधन ने कई कृत्य किए
लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया
सुई की नोक की भूमि नही दी
सदा पांडव को वनवास दिया।
अति से अति कष्ट सह कर
पांडव ने अपना जीवन वनवास में गुजार दिया
द्रोपदी वस्त्रहरण की घटना ने पूरे सभा को झकझोर दिया
भगवान कृष्ण कृपा से द्रोपदी का लाज बच गया।
दुर्योधन की हठ ने महाभारत युद्ध करवा दिया
अनगिनत सिपाही के परिवारों को उसने बिछुड़वा दिया
पूरे कुरुक्षेत्र में लहू ही लहू नजर आया
चारो तरफ लाश ही लाश नजर आया
अंत में जीत धर्म की हुई
जीत धर्म की हुई
भगवान ने धर्म का साथ
भक्त अर्जुन के वे स्वयं सारथी बन गए
साथ रह कर गीता उपदेश सुना गए।
लेकिन
आज हम देखे
हमें चारों तरफ वही कपटी शकुनि
हठधर्मी दुर्योधन
कुर्सी मे बैठे धृतराष्ट्र
वही दु:शासन नजर आते हैं।
मानवता शर्मसार नजर आती है
कई निर्भया का अत्याचार
कई निर्दयता दृश्य नजर आती है
पुकारते हैं भगवान को
यह भगवान नजर नहीं आते हैं
क्या भगवान निष्ठुर हो गए हैं?
या फिर हमारी भक्ति
या फिर हमारें कर्म?
बस यही सवाल
बस यही सवाल
वह निर्भया करती है
बस यही सवाल
वह स्थान वह जगह करती है
बस यही सवाल
शर्मसार घटना करती है।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)