वह दुख कहता है
इन्सान दुख से डरता है
इन्सान दुख से घबराता है
इन्सान दुख से दूर भागना चाहता है।
कभी वह रोता है
कभी मुस्कुराता है।
यह दुख है क्या?
यह दुख है क्या?
यह दुख नही होता तो
इन्सान ईश्वर को मन से याद नहीं करता
सुनिए यह दुख क्या कहता है।
दुख कहता है———–
हे इन्सान
हम दुख और सुख तुम्हारें जीवन में आते हैं
हम दुख और सुख सभी को सबक सिखातें हैं।
तुम्हारा यह जीवन इसी के इर्द-गिर्द चलता है
कभी तुम गिरते हो
कभी संभलते हो
कभी छप्पन व्यंजन खाते हो
कभी रुखी – सूखी रोटी खाते हो।
तुम मेरे आगोश में समा कर
बहुत ही छटपटाते हो
तुम निराश हो जाते हो
कठिन परिस्थति में जीवन गुजारते हो।
तुम इसी समय
तुम इसी समय
सुख प्राप्ति के लिए
सच्चे मन से प्रभू जी को याद करते हो
अपने मन में संकल्प शक्ति को जगाते हो
अपने जीवन को सफ़ल बनाने का प्रयास करते हो
एक नए राह में कदम आगे बढ़ाते हो
जीवन से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हो।
कुछ समय बाद
कुछ समय बाद
सफलता की सीढिय़ां चढ़ कर
सुखद मंजिल को पाते हो।
मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ
यहाँ तक मैं मित्रता की भूमिका निभाता हूँ
मैं तुम्हारें सुखी जीवन को देख खुश हो जाता हूँ।
लेकिन तुम
कुछ समय के बाद
ईश्वर को भूल जाते हो
अपने मन में अहंकार को लाते हो
बस यहीं पर तुम भूल कर जाते हो।
यहीं पर पुन:
मैं तुम्हारे जीवन में आता हूँ
तरह-तरह की बाधा तुम्हारे जीवन में लाता हूँ
तरह-तरह की बीमारी तुम्हारें तन में लाता हूँ
मैं तुम्हें बार- बार ईश्वर की याद दिलाता हूँ।
मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ
मैं सदा तुम्हारी भलाई चाहता हूँ
तुम्हें ईश्वर का ध्यान कराता हूँ
मैं तुम्हें सदा हंसते हुए देखना चाहता हूँ
मैं सदा तुम्हें ईश्वर भक्ति की ओर ले जाना चाहता हूँ।
मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ
मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)