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30 May 2024 · 2 min read

वर्तमान परिस्थिति – एक चिंतन

एक व्यक्ति विशेष ज्ञानी, बुद्धिमानी और साधन संपन्न होने पर भी एक छोटे से व्यक्ति से हार जाता है,
क्योंकि वह अदना सा व्यक्ति अपने परिस्थितिजन्य अधिकार का उपयोग करते हुए उसकी उन्नति में बाधक बनता है।
इसे नियति का चक्र कहें या उसकी प्रगति में बाधक बने व्यक्ति की भ्रष्ट मानसिकता का प्रभाव जो उस व्यक्ति के आचार एवं विचार को नियंत्रित करता है और अन्य मनुष्यों की अपेक्षित प्रगति पर एक प्रश्न चिन्ह प्रस्तुत करता है।
वर्तमान समय में इस प्रकार के उदाहरण काफी देखने को मिलते हैं। जिसमें पीठासीन व्यक्तियों के अंतर्निहित अहं के कारण अथवा भ्रष्टाचार में लिप्त व्यवस्था के फलस्वरूप अपेक्षित प्रलोभन की तुष्टीकरण के प्रभाव में सुचारू कार्य संपादन में रोड़े अटकाए जाते हैं।

हमारे देश में शासन व्यवस्था की राजनीतिकरण के कारण विकास कार्यों के सुचारू संचालन एवं संपादन में अनेक कठिनाइयों का सामान करना पड़ता है ,जिससे विकास की गति धीमी पड़ जाती है , एवं भ्रष्ट तंत्र होने से कार्य कुशलता एवं गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
हमारे देश में आजकल जनता में सत्यनिष्ठा एवं
कर्तव्यनिष्ठा की कमी देखी जा रही है , इसके मुख्य कारणों में देश के नेताओं मैं देश के प्रति समर्पण भाव की कमी एवं भ्रष्ट आचरण सम्मिलित है।
इस प्रकार आम जनता में सदाचार , राष्ट्र के विकास हेतु प्रतिबद्धता , एवं संकल्पित भावना की प्रेरणा शनैः शनैः क्षीण होती जा रही है।

देश में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या में शासकीय नौकरियों में चयन प्रक्रिया एवं नियुक्ति में भ्रष्टाचार के कारण पात्र प्रतिभाशील अभ्यार्थी नौकरियों से वंचित होकर तनाव के शिकार हो रहे हैं।
रोजगार विकल्प के प्रावधानों की कमी एवं संसाधन उपलब्ध न होने के कारण एक बड़ा युवा तबका बेरोजगारी की मार झेल रहा है , एवं तनावग्रस्त दिग्भ्रमित हो व्यसनों एवं गलत धंधों की ओर अग्रसर हो रहा है।

निजी क्षेत्रों में भी आर्थिक मंदी के कारण रोजगार के अवसर कम हुए हैं , अतः रोजगार प्रदान करने में उनकी भागीदारी भी एक प्रश्न चिन्ह प्रस्तुत कर रही है।

हमारे देश में राजनैतिक इच्छा शक्ति के बिना कोई भी विकास कार्य संभव नहीं है। सरकार बदलने पर कई परियोजनाएं जो पिछली सरकार द्वारा स्वीकृत की जा चुकी हैं , ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है , जिससे उन परियोजनाओं पर किया गया अब तक का खर्चा बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। इस तरह शासकीय धन का दुरुपयोग किया जाता है जिसका खामियाजा देश की करदाता जनता को भुगतना पड़ता है।

एक आम आदमी से लेकर राजनेता तक यदि सत्यनिष्ठा एवं कर्मनिष्ठा से युक्त , तथा दलगत राजनीति से हटकर राष्ट्रीयता के उत्प्रेरण में सर्वधर्म समभाव एवं देश के प्रति समर्पण भावना का विकास जब तक नहीं किया जाएगा , तब तक देश की उन्नति संभव नहीं हो सकती है।
कोरे नारों एवं जुमलों से कोई कार्य संभव नहीं हो सकता।
देश की जनता में जातिवाद एवं संप्रदायिकता के फैलाए ज़हर को खत्म करके भाईचारे एवं सहअस्तित्व की भावना का विकास करना होगा तभी हम देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं।
एवं प्रत्येक नागरिक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर सकता है।

Language: Hindi
112 Views
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