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12 Sep 2020 · 1 min read

वन मृग

खोज थका कस्तूरी को मृग
मन के वन में टूट गया

संचित था जो कुछ पहले का
वह भी पीछे छूट गया

मन की तृष्णा गई खींचती
बुझी न ऐंसी प्यास जगाई

विकल भटकता रहा बटोही
अन्तस् की भी सुधि न आई

हाथ लगा न कुछ भी कण भर
खुद ही खुद को लूट गया

संचित था जो कुछ पहले का
वह भी पीछे छूट गया

स्वान चबाता सूखी हड्डी
जो उसका तन बल खोती

पीकर खुद का रक्त ना समझ
भ्रम वश बुद्धि मुदित होती

अर्द्ध मूर्च्छा में जीवन का
अन्तर्घट ही फूट गया

संचित था जो कुछ पहले का
वह भी पीछे छूट गया

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 1 Comment · 388 Views
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