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12 Apr 2020 · 1 min read

वतन

वतन ऐसा कि सब देता रहा हूँ
उठा कर सिर सदा जीता रहा हूँ

हलाली कर रहे गद्दार जो अब
तभी उपचार भी करता रहा हूँ

बसा है प्यार दिल में रोज मेरे
लुटाने को बना साझा रहा हूँ

लहू मेरा बहा है अब तलक ही
मुहब्बत का बना प्यासा रहा हूँ

मदद सबकी हमेशा ही करूँ मैं
सदा ही दर्द को पीता रहा हूँ

करूँ तल्लीन हो सेवा वतन की
विनय का भाव मैं रखता रहा हूँ

हमेशा शान्ति का कहला प्रदाता
सबक यह शान्ति का बँचता रहा हूँ

भलाई का जमाना है नहीं अब
निपट बन कर भला करता रहा हूँ

दिखा कर होशियारी विश्व को अब
सरासर झूठ ही कहता रहा हूँ

दिये है जख्म सबको अनगिनत जब
किये की ही सजा भुगता रहा हूँ

जगदगुरु विश्व में मेरा वतन तो
कदम पर चल जगत झुकता रहा हूँ

Language: Hindi
Tag: कविता
73 Likes · 1 Comment · 517 Views

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