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29 Feb 2024 · 1 min read

वक़्त के वो निशाँ है

वक़्त के वो निशाँ है
चेहरे पर हमारे लिखे हुए

हर हर्फ़ बारीक़ हैं
पढ़ें ज़रा ग़ौर से

कुछ ख़ुशियों के इज़हार हैं
तो कुछ हैं ग़मज़दा

आँखों का समन्दर
तो सालों पहले सूख गया

ग़र हसें ज़रा भी तो होठ
हो जाते लहूलुहान

अब तो मुस्कुराने से भी
ख़ौफ़ लगता है

………. अतुल “कृष्ण”

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