लौ
दिए की इस लौ में
आस की बाती जलती है
चिता की उस लौ में
आस आँखों की पिघलती है ।
इस दीपक की छोटी सी लौ
जब तक घर में जलती है
प्रकाश पुंज का बनकर स्रोत
घनघोर तिमिर को हरती है ।
लौ चिता की बैकुंठ धाम में
नित सांझ सवेरे जलती है
बुला चार कंधों की डोली
आशा की लौ को हरती है ।
चिता में भस्म हुआ जीव जो
दीपक की लौ में जीता है
चिता वहाँ पर जलती है
और घर में दीपक जलता है ।
दीपक की इस जलती लौ में
आस आँखों की खोती है
उधर भस्म हो गया था सब कुछ
आत्मा विदा न होती है ।
लौ बुझा कर घर की देखो
चिता की लौ धधकती है
बुझा दो नयनों की ज्योति
घाट पर रोशनी होती है ।
लघु दीपक में जलती बाती
संदेश मानव को देती है
संघर्ष करो,जलते रहो तुम
बाती लौ को जीवन देती है ।
— डाॅ सीमा वर्मा copyright