लोग कहते हैं कैसा आदमी हूं।

गज़ल
क़ाफ़िया - आ
रद़ीफ -आदमी हूं
फ़ाइलातुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
2122……1222……..122
लोग कहते हैं कैसा आदमी हूं।
ये ही क्या कम है जैसा आदमी हूं।
कुछ बड़े हैं जो पूरे जानवर हैं,
उनके आगे मैं छोटा आदमी हूं।
मैंने कुछ भी बिगाड़ा है किसी का,
खुद मैं कहता हूं अच्छा आदमी हूं।
जो लड़ाते हैं हिन्दू और मुस्लिम,
उनके जैसा न गंदा आदमी हूं।
बंद हैं कान आंखें और मुॅंह भी,
मैं जिॅंदा बुत सा बैठा आदमी हूं।
सारी दुनियां मेरे कदमों के नीचे,
गल्तफहमी में रहता आदमी हूं।
प्यार करके मुझे इक बार देखो,
प्यार पर मरने वाला आदमी हूं।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी