Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Dec 2022 · 4 min read

*लोकसभा की दर्शक-दीर्घा में एक दिन: 8 जुलाई 1977*

*लोकसभा की दर्शक-दीर्घा में एक दिन: 8 जुलाई 1977*
————————————————————————————-
8 जुलाई 1977 को मुझे लोकसभा की कार्यवाही दर्शक-दीर्घा में बैठकर देखने का सौभाग्य मिला । दोपहर 1:00 से 2:00 तक का हमारा समय निर्धारित था । जब हम पहुंचे ,तब प्रसिद्ध मजदूर नेता और केंद्रीय मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडिस भाषण दे रहे थे । आप का भाषण सुनना एक मधुर अनुभव था । लोकसभा की दर्शक दीर्घा में बैठकर यह एक दुर्लभ कोटि का अविस्मरणीय अनुभव बन गया। यह तारीख और समय भला कहाँ याद रह पाता ? लेकिन सौभाग्य से दर्शक-दीर्घा का जो पास लोकसभा सदस्य श्री राजेंद्र कुमार शर्मा ने बनवाया था वह संयोगवश सुरक्षित रह गया । इस पर श्री राम प्रकाश विद थ्री अदर्स (श्री राम प्रकाश सर्राफ तथा तीन अन्य व्यक्ति ) अंकित था। मेरे और पिताजी के अतिरिक्त जनसंघ के तपे-तपाए नेता आदरणीय श्री भगवत शरण मिश्रा जी तथा श्री भोलानाथ गुप्त जी थे। हमने दोपहर में संसद भवन की कैंटीन में भी भोजन किया था । थाली में हमें स्वादिष्ट भोजन मिल गया था जो हमने रुचि पूर्वक ग्रहण किया तथापि सब्जियों में प्याज पड़ा होने के कारण वह हम नहीं खा पाए ।
लोकसभा की दर्शक-दीर्घा का पास कुछ नियमों के प्रतिबंध के साथ जारी हुआ था । इसमें बहुत सी ऐसी चीजों के नाम थे जिन्हें ले जाने पर प्रतिबंध था। आश्चर्यजनक रूप से बुनाई पर भी प्रतिबंध था । स्वेटर बुनने का कार्य 1977 में एक आम लोक-व्यवहार था । महिलाएँ जाड़ा आते ही एक स्वेटर बुनाई के लिए डाल देती थीं और पूरे जाड़ों में कम से कम एक स्वेटर तो पूरा कर ही लेती थीं। कभी धूप में ,कभी घर के बरामदे अथवा कमरे में यह कार्य चलता रहता था । इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं था कि लोकसभा की दर्शक दीर्घा में भी यह बुनाई का कार्य चलता रहे । संभवतः आपत्ति उनके उस गोले में दिखाई पड़ी होगी जिसमें बम का प्रतिबिंब सुरक्षा कारणों से देखा गया होगा । अब ऊन के गोले को खोलकर भला कौन चेकिंग करता ? और कर भी लेता तो बिखरी हुई ऊन को फिर से गोले का आकार देना और भी कठिन हो जाता।
संसद भवन में कार्यवाही को सजीव देखना इसलिए संभव हो गया क्योंकि 1977 में जब श्री राजेंद्र कुमार शर्मा जी रामपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए तब पूज्य पिताजी का तथा श्री शर्मा जी का यह विचार स्थापित हुआ कि दिल्ली चलकर श्री शर्मा जी को केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण कराने के लिए बड़े नेताओं से मिला जाए । इस क्रम में एक प्रतिनिधि-मंडल तैयार होकर दिल्ली गया । मेरी आयु उस समय 17 वर्ष से कम थी । तथापि मेरी रुचि को देखते हुए पिताजी ने मुझे भी साथ ले लिया ।
दिल्ली में श्री राजेंद्र कुमार शर्मा जी के सरकारी निवास पर हम लोग ठहरे थे। यह एक विशाल भवन था। दिल्ली में श्री लालकृष्ण आडवाणी और श्री सुंदर सिंह भंडारी से तो उनके निवास पर ही बातचीत हुई थी लेकिन श्री नानाजी देशमुख से दीनदयाल शोध संस्थान में जाकर मुलाकात का अवसर मिला ।
श्री नानाजी देशमुख से मिलने से पूर्व ही पिताजी ने प्रतिनिधि मंडल के अन्य लोगों से कह दिया था कि नाना जी से बातचीत मैं करूंगा । सब इससे प्रसन्न थे। दीनदयाल शोध संस्थान में दूर से ही जब श्री नानाजी देशमुख ने पिताजी को देखा तो वह सब लोगों को छोड़कर पिताजी की ओर उन्मुख हो गए । परस्पर शिष्टाचार के आदान-प्रदान के बाद पिताजी ने नाना जी से कहा -“रामपुर को कुछ और शक्ति दीजिए”। यह वार्तालाप का एक अनूठा ढंग था तथा कुछ माँगने की विशिष्ट शैली थी। इन शब्दों के बाद मंतव्य को पिताजी ने स्पष्ट किया । कुछ मिनट तक यह बातचीत एक स्थान पर ही खड़े-खड़े होती रही । उसके बाद श्री नानाजी देशमुख के साथ चलकर हम सब लोग उनकी कार तक आए । कार में बैठने से पहले श्री नानाजी देशमुख ने पिताजी से कहा -” कुछ और बात करनी हो तो मेरे साथ कार में बैठ लीजिए ” पिताजी ने स्पष्ट शब्दों में कहा “नहीं ! सब बातें हो गयीं।” यद्यपि लक्ष्य-प्राप्ति में सफलता नहीं मिली ,तो भी पिताजी को संतोष था कि हमने रामपुर की बेहतरी के लिए जो हमें करना चाहिए था ,वह अवश्य किया ।
श्री राजेंद्र कुमार शर्मा चाहे सांसद हों अथवा नहीं ,लेकिन महीने-दो महीने में पिताजी से मिलने दुकान पर अथवा घर पर अवश्य आते थे । राष्ट्रीय परिदृश्य से लेकर स्थानीय राजनीति की बारीकियों पर उनका विचार-विमर्श होता था । मुझे इन बैठकों में उपस्थित रहने का अवसर सहज उपलब्ध हो जाता था । शर्मा जी का मधुर स्वभाव था। आत्मीयता थी। एक बार मिलक में श्री लालकृष्ण आडवाणी की चुनाव सभा थी। मंच पर मैं भी बैठा था । अकस्मात शर्मा जी ने मुझसे पूछा “कुछ बोलोगे ? ” मैंने तपाक से कहा ” हां “। तत्काल शर्मा जी ने अगले वक्ता के रूप में मेरे नाम की घोषणा कर दी। मैं तब तक बोलता रहा, जब तक श्री लालकृष्ण आडवाणी नहीं आ गए ।
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
Tag: संस्मरण
30 Views

Books from Ravi Prakash

You may also like:
✍️कभी मिटे ना पाँव के वजूद
✍️कभी मिटे ना पाँव के वजूद
'अशांत' शेखर
#प्यार...
#प्यार...
Sadhnalmp2001
त्याग
त्याग
मनोज कर्ण
नवगीत
नवगीत
Mahendra Narayan
समय को दोष देते हो....!
समय को दोष देते हो....!
Dr. Pratibha Mahi
मुक्तक।
मुक्तक।
Pankaj sharma Tarun
Learn lesson and enjoy every moment, your past is just a cha
Learn lesson and enjoy every moment, your past is just...
Nupur Pathak
⚘️महाशिवरात्रि मेरे लेख🌿
⚘️महाशिवरात्रि मेरे लेख🌿
Ankit Halke jha
वक्त के हाथों मजबूर सभी होते है
वक्त के हाथों मजबूर सभी होते है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
वही तो प्यार होता है
वही तो प्यार होता है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
"विचित्र संसार"
Dr. Kishan tandon kranti
💐अज्ञात के प्रति-115💐
💐अज्ञात के प्रति-115💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
प्यारे गुलनार लाये है
प्यारे गुलनार लाये है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*महान साहित्यकार डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र के पत्र*
*महान साहित्यकार डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र के पत्र*
Ravi Prakash
The Moon!
The Moon!
Buddha Prakash
करके तो कुछ दिखला ना
करके तो कुछ दिखला ना
कवि दीपक बवेजा
मकर पर्व स्नान दान का
मकर पर्व स्नान दान का
Dr. Sunita Singh
Ye Sidhiyo ka safar kb khatam hoga
Ye Sidhiyo ka safar kb khatam hoga
Sakshi Tripathi
सोचिएगा ज़रूर
सोचिएगा ज़रूर
Shekhar Chandra Mitra
दिसंबर
दिसंबर
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
कुछ तो खास है उसमें।
कुछ तो खास है उसमें।
Taj Mohammad
तेरा बस इंतज़ार रहता है
तेरा बस इंतज़ार रहता है
Dr fauzia Naseem shad
■ हास्य के रंग : व्यंग्य के संग
■ हास्य के रंग : व्यंग्य के संग
*Author प्रणय प्रभात*
चलो हमसफर यादों के शहर में
चलो हमसफर यादों के शहर में
गनेश रॉय " रावण "
खबर हादसे की
खबर हादसे की
AJAY AMITABH SUMAN
शायरी
शायरी
श्याम सिंह बिष्ट
उम्मीदों का सूरज
उम्मीदों का सूरज
Shoaib Khan
उसकी रहमत से खिलें, बंजर में भी फूल।
उसकी रहमत से खिलें, बंजर में भी फूल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
✍️वो अच्छे से समझता है ✍️
✍️वो अच्छे से समझता है ✍️
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Loading...