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26 Apr 2020 · 1 min read

लॉक डाउन, मरने का डर और चिठ्ठियाँ

मरने का डर नहीं है,
हाँ मगर डर है…
उन चिट्ठियों के मुझसे
नाराज़ हो जाने का,
जो भावनाओं की पर्तों में
अपनी गिनती बढ़ाती रहती हैं

ये वही भाग्यशाली चिट्ठियां हैं
जिनके हिस्से नहीं आई
कागज – कलम की
मनमानी और न ही आई
किसी डिजिटल पन्ने पर
छप कर डिलीट – सेव बटन के
तराजू में तौले जाने की दुविधा.

जिंन चिठ्ठियों के हिस्से आया
तो बस मेरे दिल का डाकखाना
जहां चिट्ठियों का ढेर
बहुत पहले से ही लगा पड़ा है

ये ढेर तबसे लगता रहा है
जब मैं इन्हें
पहचानती तक न थी
समझती थी तो बस
रद्दी का एक बोझा..

जो मेरे सीने, माथे और
दिमाग पर
कब्ज़ा जमाये बैठा है
और जैसे जोर का दम लगाके
एक दिन दिल की धड़कन
पर गिरेगा धम्म से,

पर अब बोझा हल्का हो चला है
चिठ्ठियाँ न केवल
बांटी जाने लगी है
बल्कि
मांगी भी जाने लगी हैं
पढ़ने के लिए,

और यही तो
इनका सौभाग्य है.

22/04/20
Riya Gupta ‘Prahelika’

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 2 Comments · 216 Views
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