लैपटॉप सी ज़िंदगी
उम्मीदों के लैपटॉप पर
जब उंगलियां
नाचती हैं
सामने होती है
तहरीर
और आँखों में
तस्वीर।
कौन कहता है, हम नहीं
नाचते
छोटा सा शब्द हमको भी
नचा देता है
अक्षर अक्षर थिरकती ये
उंगलियां
सबको घर का हाल/पता
बताती हैं।।
दौड़ती उंगलियों का
वेग
कुछ कर दिखाने का
जोश
अक्सर शब्द भुला देता है
ठीक वैसे ही
जैसे समुद्र को
नहीं पता
कौन मिला,
कौन बिछड़ा…?
एक टंकण सी जिंदगी
रोज बूटे टांकती है
बिक जाए कुछ भी
कीमत जानती है।।
नेह और देह के बीच
इतना ही फासला है
शब्द पराये/ उंगलियां अपनी
क्या करें
घर का फैसला है।।
सूर्यकान्त