बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को
आज़ाद भारत एक ऐसा जुमला है
भगण के सवैये (चुनाव चक्कर )
लब पे ख़ामोशियों के पहरे थे
"राज़-ए-इश्क़" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
मां! बस थ्हारौ आसरौ हैं
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
"घूंघट नारी की आजादी पर वह पहरा है जिसमे पुरुष खुद को सहज मह
उदास रातें बुझे- बुझे दिन न खुशनुमा ज़िन्दगी रही है
हिन्दी में ग़ज़ल की औसत शक़्ल? +रमेशराज
आग पानी में लगाते क्यूँ हो
*जीवन समझो एक फुलझड़ी, दो क्षण चमक दिखाती (हिंदी गजल)*
गुरु रत्न सम्मान हेतु आवेदन आमंत्रित हैं
कभी तो ये शाम, कुछ यूँ गुनगुनाये, कि उसे पता हो, इस बार वो शब् से मिल पाए।
सती सुलोचना
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर