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10 May 2024 · 1 min read

लफ्जों के सिवा।

पैरहन में बहुत छेद थे उस गरीब के।
वो कैसे चला जाता यूं महफिले अमीर के।।

लफ्जों के सिवा ना था कुछ देने को।
तोहफे में दुआएं भेजी है वास्ते रफीक के।।

दिली चाहत को वो दबाए रखता है।
उसने हंसी मांगी है बस सदके हबीब के।।

नेक दिल इंसा है वो सबके ही लिए।
मुहब्बत से जीता है रिश्तों को करीब से।।

वो ज्यादा जनता नही है अमीरों को।
जो गुनाहों में है पर दिखते है शरीफ से।।

हर हाल पे वो शुक्र ए खुदा करता है।
वो खुश है उससे जो मिला है नसीब से।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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