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22 Jul 2024 · 1 min read

रोक दो ये पल

एक दो पल रुके और चल दिये
रोक दो ये पल क़यामत तक के लिए

जी लेने को पल ही काफ़ी है
कौन जीता है यहाँ मुद्दतों के लिए

हंसने को एक लम्हा काफ़ी है
अरसा निकला है इस ख़ुशी के लिये

कहाँ जाएँगे जिनके घर नहीं होते
दुनियाँ तमाशा है बेरोज़गार के लिए

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