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28 Mar 2023 · 1 min read

रूप का उसके कोई न सानी, प्यारा-सा अलवेला चाँद।

रूप का उसके कोई न सानी, प्यारा-सा अलवेला चाँद।
निहारे धरा को टुकुर-टुकुर, गोल-मटोल मटके-सा चाँद।

चुपके-चुपके साँझ ढले वह, नित मेरी गली में आता।
नजरें बचाकर सारे जग से, तड़के ही छिप जाता चाँद।

© सीमा अग्रवाल

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