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15 Aug 2024 · 1 min read

रुक्मणी

रुक्मणी
कितने युग पीछे छूट गईं हो
सच कहूं
तो कभी तुम्हारी याद भी नहीं आती
पर आज
प्रेम और कर्म को ढूंढ़ती
नारी की बात सोचते
यकायक तुम
मेरे चेतन में उभर आई
उस उजली सुबह में
जब तुम
पद, धन , यहां तक कि
स्वजनों का आशीर्वाद त्याग
केशव के साथ
रथ पर सवार हुई
लम्बी , अन्जान, डगर पर
तो आत्मविश्वास
के अतरिक्त
तुम्हारी मुठी में क्या था ?

शशि महाजन – लेखिका

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