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11 Jan 2023 · 1 min read

रिश्ता

वो कहते है अटूट है रिश्ता
ज़िन्दगी का दस्तूर है रिश्ता
लाखों बंधे हैं इसमें इस कदर
औरत का सिन्दूर है रिश्ता ।।
लाखों देखें है ज़माने में
मिट्टी का कारतुस है रिश्ता
रोज बंधते बिखरते रहते है
जैसे दोपहर का धूप है रिश्ता।।
हमने एक दूसरे को तरसते देखा
किसी एक की फिकर में
दुसरे को हमने मरते देखा
किसको यहां कबूल है रिश्ता।।
अपने से पराए को
ज़िन्दगी से मौत को
सगे से सौत को
“प्रभात ” समरूप है रिश्ता
स्वरचित कविता:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 312 Views
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