रास्ता दुर्गम राह कंटीली, कहीं शुष्क, कहीं गीली गीली
रास्ता दुर्गम राह कंटीली, कहीं शुष्क, कहीं गीली गीली
लक्ष दूर विपरीत हवाएं, मौसम की आंख मिचौली
भटक न जाएं बीच डगर में, राहें बड़ी रपटीली
ऊबड़ खाबड़ पथ जीवन का, गलियां हैं पथरीली
अंधियारे निर्जन वन में, नहीं कोई सखी सहेली
पता नहीं कब मिलेगी मंजिल, जीवन एक पहेली
चलते रहना ही बेहतर है, सुख दुख संग अकेली
मिला नहीं कोई पथ में ऐसा, जिसने नहीं मुसीबत झेली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी